गर्भस्थ शिशु को अपंग भी बना डालती है: नशीली औषधियाँ


     आज के समय में सिर्फ युवक ही नहीं बल्कि अनेक युवतियाँ भी 'हिरोइन' या अन्य मादक पदार्थों के सेवन में पीछे नहीं दिखती हैं। महाविद्यालयों में पढ़ने वाली प्रायः छात्राएँ हिरोइन जैसी अन्य मादक पदार्थों का सेवन कुसंगतियों के कारण करने लग जाती हैं। इस प्रकार के मादक (नशीली) दवाओं या पदार्थों के सेवन से अनेक शारीरिक बीमारियाँ पनपने लगती हैं। इसका सबसे अधिक दुष्प्रभाव उन महिलाओं पर पड़ता है, जिनके गर्भ में बच्चे पल रहे होते हैं। शादीशुदा औरतें भी छात्रजीवन में किए जाने वाले नशीली वस्तुओं के सेवन से स्वयं को नहीं बचा पाती हैं। 
     गर्भविज्ञान के विशेषज्ञों के अनुसार गर्भकाल में किसी भी नशीली दवाओं या पदार्थों के सेवन से उस पदार्थ के कुप्रभाव से गर्भस्थित भ्रूण प्रभावित होने से नहीं बचता है, और उसका शारीरिक एवं मानसिक ढ़ांचा में विकार उत्पन्न होने लग जाता है। फलस्वरूप जन्म लेने के बाद वह शिशु शारीरिक या मानसिक विकलांगता को पाता है। 
     1965 ई० के आसपास ब्रिटेन में भुत बड़ी संख्या में बौने और विकलांग बच्चों का जन्म हुआ जिससे वहाँ की सरकार के कान खड़े हो गए। वहाँ के वैज्ञानिकों ने जब जाँच करना प्रारम्भ किया तो उन्होंने पाया कि ऐसे बच्चों की माताओं ने गर्भकाल में 'थालिडोमाइड' जैसी खतरनाक औषधि का प्रयोग किया था या अन्य प्रकार के नशीली वस्तुओं का सेवन किया करती थी। 
इस संदर्भ में वैज्ञानिकों ने पाया कि 'थालिडोमाइड' जैसी खतरनाक औषधि का प्रभाव शिशु के मस्तिस्क की अपेक्षा उसके अंग पर अधिक पड़ता है और जन्म लेने वाले शिशु प्रायः अंगविहीन हुआ करते हैं। किसी को दृष्टिदोष हो जाता है,तो कुछ बहरे और गूंगे भी हो जाते हैं। ध्यान देने योग्य बात यह है कि किसी भी नशीले पदार्थ के सेवन से शिशु के सिर्फ बहरी अंग-उपांगों का ही क्षय होता है बल्कि आंतरिक अवयव भी विकृत हो जाते हैं। 
     विशेषज्ञों के अनुसार गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला द्वारा किसी भी नशीले पदार्थ या मादक औषधियों के सेवन से गर्भस्थ शिशुओं पर क्रमशः कुप्रभाव पड़ने लगता है। इतना ही नही,प्रसवावस्था के दौरान थोड़ी सी भी पीड़ा को झेल पाने के कारण अनेक औरतें सिरदर्द में भी बिना किसी की राय लिए सिरदर्द की गोलियाँ खाती रहती हैं। उन्हें इस बात का ज्ञान नही होता कि  सिरदर्द अपने आप में कोई रोग नहीं होता बल्कि वह विशेष परिस्थिति का लक्षण मात्र होता है। जब पेटेन्ट गोलियों से भी पीड़ा नहीं जाती है,तो वह अन्य पावरफुल दर्द निवारक औषधियों का सेवन करने लगती हैं। इसी क्रम में ब्रिटेन की महिलाओं ने 'थालिडोमाइड' नामक औषधि का प्रयोग करना शुरू कर दिया था,फलस्वरूप उनके जन्म लेने वाले शिशुओं में अनेक प्रकार की शारीरिक विकृतियाँ पायी गयीं। 
     आज की नवयौवनाएँ भी गर्भ धारण के बाद गर्भस्थ शिशु के प्रति लापरवाह बनी रहती हैं और कॉलेज लाइफ के अनुसार ही अनेक प्रकार की ड्रग या नशीली वस्तुओं का सेवन करती रहती हैं। हालांकि वह गर्भकाल के दौरान चिकित्सक के सम्पर्क में रहती हैं किन्तु नशीली वस्तुओं का सेवन वह परिवारजनों से छिपकर करती रहती हैं,फलस्वरूप वह माँ बनने के बाद भी स्वस्थ शिशु की लालसा पूरी नहीं कर पाती हैं। 
   गर्भकाल में किसी भी नशीले पदार्थ को नहीं लेना चाहिए। चिकित्सकों के अनुसार गर्भवती महिलाओं को धूम्रपान,शराब,भांग,अधिक चाय,अधिक कॉफी,अधिक कोल्ड्रिंक्स आदि से भी अपने गर्भस्थ शिशु की स्वस्थता के लिए परहेज करना चाहिए। 

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