अधिकांश लोग पचास की आयु पार करने के बाद अपने आप को बूढ़ा समझने लगते हैं क्योंकि 40 वर्ष की आयु के बाद हमारे अंग प्रत्यंग शिथिल होने लगते हैं। उनमें उतनी सक्रियता और शक्ति नहीं रह जाती जितनी पहले थी।
50 वर्ष की अवस्था के बाद स्नायु कमजोर हो जाते हैं तथा नई कोशिकाओं का निर्माण कम हो जाता है और पाचनशक्ति भी दुर्बल हो जाती है। इस अवस्था में हार्मोनों का बनना भी कम हो जाता है। नतीजतन व्यक्ति अपने आपको वृद्ध समझने लगता है। उसकी यौन शक्ति भी कमजोर हो जाती है। शरीर दुर्बल होने से थोड़े से परिश्रम से ही थकावट महसूस होने लगती है। नेत्र की ज्योति भी कमजोर हो जाती है।
अगर व्यक्ति चालीस वर्ष की अवस्था से ही उचित आहार-विहार का पालन करने लगे तो बुढ़ापे को कुछ समय के लिए टाला जा सकता है तथा साठ वर्ष की आयु में भी व्यक्ति चुस्त दुरूस्त महसूस कर सकता है तथा उपरोक्त विकारों से बच सकता है। योगी अपने योग साधना एवं उचित आहार-विहार के कारण तेजस्वी बने रहते हैं तथा बुढ़ापे में भी जवान लगते हैं। अगर आप भी लम्बी आयु प्राप्त करना चाहते हैं और बुढ़ापे में भी जवान दिखना चाहते हैं तो इन नियमों का पालन निश्चित रूप से करें:-
रात में जल्दी सो जाएं तथा प्रातःकाल चार बजे ही उठ जाएं। सुबह जल्दी जागना स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक होता है। सुबह जगने के बाद मुंह हाथ धोकर एक गिलास ताजा पानी में आधा कागजी नींबू का रस निचोड़ कर पियें। जिन्हें नींबू अनुकूल नहीं रहता, वो दस-बीस ग्राम शहद को पानी में मिलाकर पियें।
नित्यप्रति प्रातः सायं आधा घंटा खुली हवा में टहलना अच्छा व्यायाम माना जाता है। इससे फेफड़ों को आक्सीजन की प्राप्ति होती है। सुबह-शाम नियमित रूप से शौच भी जाना चाहिए। शौच के समय अधिक जोर नहीं लगाना चाहिए। शवासन तथा कुछ आसनों को नियमित रूप से किया जाना चाहिए।
नित्यप्रति शीतल जल से ही स्नान किया जाना चाहिए। स्नान करने से एक घंटा पहले समूचे शरीर में तेल की मालिश कर लेनी चाहिए।
पथ्य आहार के नियमों का पालन करते हुए आंवले का रस, शहद, मिश्री तथा घृत मिलाकर प्रतिदिन चाटते रहने से बुढ़ापे का विकार उसा प्रकार नष्ट हो जाते हैं जिस प्रकार मन लगाकर न पढ़ने से याद की हुई चीजों को लोग भूल जाया करते हैं।
प्रातः 7-8 बजे नश्ता अवश्य कर लें। नाश्ते के बाद च्यवनप्राश अवलेह 20 ग्राम अथवा आंवले का मुरब्बा दो पीस तथा किशमिश, खजूर, मूंगफली, काजू ,अंजीर में से कोई एक 20 ग्राम तथा दूध 200 ग्राम मिलाकर अवश्य लें।
भोजन के तुरंत बाद या तुरंत पहले पानी नहीं पीना चाहिए। नित्यप्रति 8-10 गिलास पानी पीने की आदत डालें। भोजन के बीच में थोड़ा पानी पीने की आदत डालें। भोजन के बीच में थोड़ा पानी पीया जा सकता है। भोजन के एक घंटा पहले या एक घंटा बाद में पाना पीया जा सकता है।
हंसना एवं प्रसन्न रहना जीवन के लिए अच्छा माना जाता है। खुद भी हंसिये और दूसरों को भी हंसाइये। क्रोध, चिन्ता, शोक, भय आदि से हमेशा बचे रहना चाहिए। ये सभी विकार मनुष्य को रोगी एवं कमजोर बना डालते हैं।
भोजन में कम मिर्च-मसाले, साग-सब्जी, सलाद, छाछ, मूंग या मसूर की दाल, पत्तियों वाले साग का इस्तेमाल नियमित रूप से करना चाहिए। चोकर युक्त आटे की रोटी, उबली साग-सब्जी, टमाटर, खीरा, कच्चा प्याज, मूली, कच्चा नारियल, गाजर, ककड़ी, हरा धनिया आदि का प्रयोग भोजन में अवश्य ही करना चाहिए।
मांसाहार, धूम्रपान, मदिरापान आदि नहीं करना चाहिए। चाय, काॅफी आदि के सेवन से भी यथासंभव बचे रहना चाहिए।
बिना जरूरत के विटामिन अथवा अन्य दवाओं का सेवन नहीं करना चाहिए। किसी भी दवा के सेवन से पहले चिकित्सक से सलाह अवश्य ले लेनी चाहिए।
भूख से अधिक नहीं खायें और अधिक समय तक भूखे भी नहीं रहें। इसका ध्यान रखें कि हम जाने के लिए खाते हैं न कि खाने के लिए जीते हैं।
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50 वर्ष की अवस्था के बाद स्नायु कमजोर हो जाते हैं तथा नई कोशिकाओं का निर्माण कम हो जाता है और पाचनशक्ति भी दुर्बल हो जाती है। इस अवस्था में हार्मोनों का बनना भी कम हो जाता है। नतीजतन व्यक्ति अपने आपको वृद्ध समझने लगता है। उसकी यौन शक्ति भी कमजोर हो जाती है। शरीर दुर्बल होने से थोड़े से परिश्रम से ही थकावट महसूस होने लगती है। नेत्र की ज्योति भी कमजोर हो जाती है।
अगर व्यक्ति चालीस वर्ष की अवस्था से ही उचित आहार-विहार का पालन करने लगे तो बुढ़ापे को कुछ समय के लिए टाला जा सकता है तथा साठ वर्ष की आयु में भी व्यक्ति चुस्त दुरूस्त महसूस कर सकता है तथा उपरोक्त विकारों से बच सकता है। योगी अपने योग साधना एवं उचित आहार-विहार के कारण तेजस्वी बने रहते हैं तथा बुढ़ापे में भी जवान लगते हैं। अगर आप भी लम्बी आयु प्राप्त करना चाहते हैं और बुढ़ापे में भी जवान दिखना चाहते हैं तो इन नियमों का पालन निश्चित रूप से करें:-
रात में जल्दी सो जाएं तथा प्रातःकाल चार बजे ही उठ जाएं। सुबह जल्दी जागना स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक होता है। सुबह जगने के बाद मुंह हाथ धोकर एक गिलास ताजा पानी में आधा कागजी नींबू का रस निचोड़ कर पियें। जिन्हें नींबू अनुकूल नहीं रहता, वो दस-बीस ग्राम शहद को पानी में मिलाकर पियें।
नित्यप्रति प्रातः सायं आधा घंटा खुली हवा में टहलना अच्छा व्यायाम माना जाता है। इससे फेफड़ों को आक्सीजन की प्राप्ति होती है। सुबह-शाम नियमित रूप से शौच भी जाना चाहिए। शौच के समय अधिक जोर नहीं लगाना चाहिए। शवासन तथा कुछ आसनों को नियमित रूप से किया जाना चाहिए।
नित्यप्रति शीतल जल से ही स्नान किया जाना चाहिए। स्नान करने से एक घंटा पहले समूचे शरीर में तेल की मालिश कर लेनी चाहिए।
पथ्य आहार के नियमों का पालन करते हुए आंवले का रस, शहद, मिश्री तथा घृत मिलाकर प्रतिदिन चाटते रहने से बुढ़ापे का विकार उसा प्रकार नष्ट हो जाते हैं जिस प्रकार मन लगाकर न पढ़ने से याद की हुई चीजों को लोग भूल जाया करते हैं।
प्रातः 7-8 बजे नश्ता अवश्य कर लें। नाश्ते के बाद च्यवनप्राश अवलेह 20 ग्राम अथवा आंवले का मुरब्बा दो पीस तथा किशमिश, खजूर, मूंगफली, काजू ,अंजीर में से कोई एक 20 ग्राम तथा दूध 200 ग्राम मिलाकर अवश्य लें।
भोजन के तुरंत बाद या तुरंत पहले पानी नहीं पीना चाहिए। नित्यप्रति 8-10 गिलास पानी पीने की आदत डालें। भोजन के बीच में थोड़ा पानी पीने की आदत डालें। भोजन के बीच में थोड़ा पानी पीया जा सकता है। भोजन के एक घंटा पहले या एक घंटा बाद में पाना पीया जा सकता है।
हंसना एवं प्रसन्न रहना जीवन के लिए अच्छा माना जाता है। खुद भी हंसिये और दूसरों को भी हंसाइये। क्रोध, चिन्ता, शोक, भय आदि से हमेशा बचे रहना चाहिए। ये सभी विकार मनुष्य को रोगी एवं कमजोर बना डालते हैं।
भोजन में कम मिर्च-मसाले, साग-सब्जी, सलाद, छाछ, मूंग या मसूर की दाल, पत्तियों वाले साग का इस्तेमाल नियमित रूप से करना चाहिए। चोकर युक्त आटे की रोटी, उबली साग-सब्जी, टमाटर, खीरा, कच्चा प्याज, मूली, कच्चा नारियल, गाजर, ककड़ी, हरा धनिया आदि का प्रयोग भोजन में अवश्य ही करना चाहिए।
मांसाहार, धूम्रपान, मदिरापान आदि नहीं करना चाहिए। चाय, काॅफी आदि के सेवन से भी यथासंभव बचे रहना चाहिए।
बिना जरूरत के विटामिन अथवा अन्य दवाओं का सेवन नहीं करना चाहिए। किसी भी दवा के सेवन से पहले चिकित्सक से सलाह अवश्य ले लेनी चाहिए।
भूख से अधिक नहीं खायें और अधिक समय तक भूखे भी नहीं रहें। इसका ध्यान रखें कि हम जाने के लिए खाते हैं न कि खाने के लिए जीते हैं।
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